मॉस्को। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध पर विराम लगने के फिलहाल कोई आसार नहीं नजर नहीं आ रहे हैं। रूस से खफा अमेरिका ने रूस के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कई प्रतिबंध लगाये थे। जिसके बाद रूस को बहुत बड़ी आर्थित हानि हुई। केवल तेल के व्यापार से इतराने वाला रूस घुंटनो के बल गिर पड़ा। कारण था अमेरिका के प्रतिबंध के बाद अन्य देशों द्वारा रूस से तेल नहीं खरीदना।
इसके बाद अमेरिका ने एक और सख्त कदम उठाते हुए रूस के तेल कीमत पर लगाम लगाते हुए मूल्य सीमा तय कर दिया। जिसके बाद से रूस पहले के मुकाबले कम कीमत पर तेल बेचने को मजबूर हो गया। जिसका सीधा-सीधा फायदा सभी देशों को होना शुरू हो गया। अमेरिका के ट्रेजरी विभाग के आर्थिक नीति के सहायक सचिव एरिक वान नोस्ट्रैंड ने रूस के तेल पर मूल्य सीमा लागू करने के अमेरिकी फैसले की सराहना भी की है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि इस फैसले से भारत समेत अन्य देशों को फायदा हुआ है।
इन तमाम फैसलों पर तीखी नजर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी थी। जैसे ही सही समय आया प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के साथ हाथ मिलाते हुए भारत के लिए सस्ते तेल का इंतजाम कर लिया। जिसके बाद भारतीय बाजार में भी तेल के कीमतों में राहत मिलती दिखाई दी।
मूल्य सीमा पर अमेरिका ले रहा क्रेडिट
अमेरिका के ट्रेजरी विभाग के आर्थिक नीति के सहायक सचिव एरिक वान नोस्ट्रैंड ने कहा कि मूल्य सीमा का पहला वर्ष सफल रहा। वैश्विक तेल बाजारों में सप्लाई बनी रही, जबकि रूस का तेल डिस्काउंट रेट पर बिक रहा था। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्राइस कैप ने अन्य देशों को तेल बेचने के रूस के विकल्पों को बाधित किया है। उन्होंने कहा, ’पिछली गर्मियों और पतझड़ में हमने देखा कि मूल्य सीमा से ज्यादा कीमत पर तेल बेचने के लिए रूस कदम उठा रहा है। उसने इससे जुड़े बुनियादी ढांचे में निवेश किया है। इसका नतीजा ये है कि रूसी तेल पर डिस्काउंट कम हो गया है।’ उन्होंने आगे कहा कि रूस को रोकने के लिए अमेरिका कदम उठा रहा है, जिसके बाद वह भारत और दूसरे देशों को बड़ी छूट पर तेल बेचने को मजबूर हुआ है।