फरीदाबाद। अगर आपके वाहन के भारी भरकम चालान कट गए हैं। चाहे वह बाइक हो, कार हो या कोई भी अन्य वाहन, तो आपके पास सुनहरा मौका है उसे माफ अथवा कम कराने का। यह कैसे होगा संभव आइए जानते हैं।
दरअसल, राष्ट्रीय लोक अदालत की अगली तिथि की घोषणा हो चुकी है। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के चेयरमैन तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश संदीप गर्ग की अध्यक्षता में व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव एवं मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ऋतु यादव के मार्गदर्शन में फरीदाबाद के न्यायिक परिसर में आगामी 14 दिसंबर 2024 को राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा।
राष्ट्रीय लोक अदालत में किसी भी प्रकार के लंबित मामलों का समाधान के लिए रखा जा सकता है। राष्ट्रीय लोक अदालत के माध्यम से लोग अपने लंबित पड़े मामलों को आपसी सहमति से आसानी से निपटा सकते हैं। लोक अदालत में उन्हीं मामलों को रखा जाता है, जिनका दोनों पक्षों की सहमति से समाधान किया जा सके।
इन सबके अलावा अगर आपके वाहनों के भारी भरकम चालान कट गए हैं और आप परेशान हैं तो आप इसके लिए भी लोक अदालत में आवेदन लगा सकते हैं। जिन्हें जानकारी नहीं होती है वे प्रक्रिया में जाने से पहले ही घबराते हैं। लेकिन आपको बता दें कि मामूली सी प्रक्रिया कर लेने से लोक अदालत में आपके भारी भरकम चालन का पैसा कम हो सकता है कई मामलों में माफ भी कर दिए जाते हैं
सीजेएम ऋतु यादव ने बताया कि राष्ट्रीय लोक अदालत में विभिन्न अदालतों में विचाराधीन केसों को दोनों पक्षों की आपसी सहमति से लंबित मामलों का समाधान किया जाएगा।
सीजेएम ऋतु यादव ने विभिन्न अदालतों में विचाराधीन केसों से संबंधित लोगों से आह्वान किया कि वे राष्ट्रीय लोक अदालतों के माध्यम से अपने केसों का निपटारा करवाकर राष्ट्रीय लोक अदालत का फायदा उठाएं।
लोक अदालतें क्या हैं?
लोक अदालत विवादों को समझौते के माध्यम से सुलझाने के लिए एक वैकल्पिक मंच है। सभी प्रकार के सिविल वाद तथा ऐसे अपराधों को छोड़कर जिनमें समझौता वर्जित है, सभी आपराधिक मामले भी लोक अदालतों द्वारा निपटाये जा सकते हैं। लोक अदालत के फैसलों के विरूद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है।
लोक अदालत का नियम क्या है?
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत लोक अदालत को वैधानिक दर्जा दिया गया है। उक्त अधिनियम के तहत, लोक अदालतों द्वारा दिया गया निर्णय सिविल न्यायालय का निर्णय माना जाता है और यह अंतिम होता है तथा सभी पक्षों पर बाध्यकारी होता है। इसके निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती।